कल नहाय-खाय के साथ होगी छठ महापर्व की शुरुआत, जब 36 घंटे उपवास रखेंगी महिलाएं....
पूर्वांचलियों के लिए सबसे बड़ा पर्व छठ पूजा की शुरुआत शुक्रवार से हो रही है जब व्रती महिलाएं नदियों और अन्य जलाशयों में स्नान करेंगी. इस दिन विशेष प्रकार का भोजन करेंगी
दिल्ली : लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत शुक्रवार 17 नवंबर को नहाय-खाय के साथ हो रही है. यह चार दिन का त्योहार है. भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है. राजधानी दिल्ली में पूर्वांचली परिवार भी छठ व्रत मनाते हैं जिसके लिए कई स्थाई और अस्थाई घाटों का निर्माण किया गया है. आप के पार्षदों ने घाटों पर भीड़ का प्रबंधन करने के लिए वार्ड स्तर पर समितियों का गठन किया है जो वॉलिंटियर्स के साथ मिलकर काम करेंगे.
दिल्ली पुलिस ने बनाए स्पेशल कंट्रोल रूम
वहीं छठ पूजा मनाने में किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिए दिल्ली पुलिस ने अतिरिक्त सुरक्षा बल की तैनाती कर रही है. इसके साथ ही दो बड़े रेलवे स्टेशनों पर स्पेशल कंट्रोल रूम बनाए गए हैं. लोगों के लिए स्पेशल हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं. दिल्ली में यमुना नदी के किनारे बड़ी संख्या में लोग छठ पूजा मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं.
बता दें कि षष्ठी की रात को दीप जलाकर जागरण के साथ गीत और कथा के जरिए भगवान सूर्य की महिमा का बखान किया जाता है. इसके बाद सप्तमी की तिथि में प्रातः काल उगते हुए सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है और फिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ इस महापर्व का समापन होता है. इसकी शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है. इस दिन लौकी-अरवा चावल, चने की दाल सहित सात्विक तरीके से बिना लहसुन-प्याज के कई तरह के पकवानों को बनाया जाता है. जिसे भगवान को भोग लगाने के बाद, व्रती महिलाएं खाती हैं और फिर सब लोग उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं. खास बात यह होती है कि जब व्रती भोजन ग्रहण कर रही होती हैं तो किसी भी प्रकार की आवाज नहीं होनी चाहिए.
गंगा में स्नान का है नियम
इस दिन का काफी महत्व होता है और नहाय-खाय के दिन गंगा स्नान का विधान है. इसके बाद खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रख कर रोटी-खीर या फिर लौकी की खीचड़ी बनाती हैं, जिसे भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद के रूप में खाया जाता है, और तब से छठ व्रती का 36 घंटों का उपवास शुरू होता है, जो सुबह के अर्घ्य के साथ समाप्त होता है.
पारण के साथ पूरा होता है व्रतियों का उपवास
18 नवंबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 19 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा और फिर 20 नवंबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उगते सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा.